क्यों आवाज़ दी, बुलाती रही.
यहाँ कौन सुनेगा तुम्हारी आवाज़,
इस समाज को जब बेटी पर नही नाज़.
फिर तुमको जला दिया मिलकर तेरे ही घर में,
दहेज़ के लोभी वोह तीन चार थे उसी घर में.
क्यों रास नही आया तुम्हारा हँसना हँसाना ,
धू धू कर जल गई एक और अबला और ख़तम हुआ एक और फ़साना.