2009-09-16

वैश्नो माँ

जय माता दी















माँ वैश्नो देवी









कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँ कोई संतान न थी।
वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। अन्य कन्याएँ तो चली गईं किंतु माँ वैष्णो नहीं गईं। वह श्रीधर से बोलीं-‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुँची तो वह बोले, ‘मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।’ ‘ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।’ कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भाँप गई थीं। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माँ शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुँचा। एक साधु ने उससे कहा, ‘जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’ भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं।
वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है। देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भरैव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया।भैरव का सिर भैरों घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी। आज भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णों के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं।




बोलो जय माता दी।


nature


Dansal Baba Near Katra ( Vaishno Devi) J&K


I visited this place on 13-09-2009. This is very nice place and full of nature's gift. Human hands are still far from this site.


I remember RabinderNath Tagore Poems Human Aggression on Nature.
In poem, “I plucked you Flower” (The Gardener, Poem No. LVII), human aggression gets expressed through the plucking of a flower

I plucked your flower, O world!
I pressed it to my heart and the thorn pricked.
When the day waned and it darkened, I found that
the flower had faded, but the pain remained. (1-4)


Humans have the habit of destroying something to create something for them. They destroy a beautiful rock to create a sculpture of their liking. They cut a gorgeous tree to make a musical instrument for their use. Many trees are uprooted This is how human beings behave. This attitude is caused by their anthropocentric behaviour. It is totally unnecessary for humans to enter into the creating act. The modern inventions in gene technology will boomerang on them one day. Dollys of today will teach the humans a lesson later. If they do something in a biocentric way, then that will exist for ever. All anthropocentric attempts will end only in disaster. Tagore beautifully says, “Ah! it is not for you to open the bud into a blossom” . He repeats this line to give double emphasis. Humans should understand the roles assigned to them at a macrocosmic level. Any human aggression will end in a disaster for the whole biosphere.



मीठे बोल

दो मीठे बोल किसी को बोलिए उसका खून बढ जाएगा आपका रक्तदान हो जायेगा