इश्वर के रंग कहाँ देखूं ,
मुझे तो रंग दिखाया ही नही।
सबको दी रंगों की पोटली,
मुझे तो कोई रंग बताया ही नही ।
डरती रही की कुछ न बिगड़े,
पर हर डर पर जीवन पाया ही नही ।
जो भी होगा वो तो भविष्य में होगा,
डरा डरा कर वर्तमान गवाया मैंने।
हर फूल से खाया ज़ख़्म मैंने,
हर ज़ख़्म पर मरहम लगाया मैंने।
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