2009-07-26
एक बार एक भिक्षु भिक्षा लेने एक गाँव में गया ।एक घर के दरवाज़े पर भिक्षा मांग रहा था । दोपहर का समय था। काफी देर के बाद दरवाज़ा न खुलने पर उसने ज़ोर से दरवाजा खटखटाया । तब एक औरत ने दरवाज़ा खोला और भड़क कर कहा " क्या है? दिन में भी चैन नही लेने देते । जब मन करता है आ जाते हो भिक्षा मांगने । अब तुम्हारे लिए ही तो बैठे नही है। " भिक्षु चुप चाप खड़ा रहा। फिर भोला " माई। कुछ भी भिक्षा दे दो। औरत फिर चिल्लाये " तुम्हे शर्म नही आती? जाओ कहीं और भिक्षा मांगो। एक ही घर नही है इस गाँव में। हट्टे कटते हो कर भिक्षा लेते हो। " भिक्षु भोला" माई। हम तो गुरुकुल में पढ़ते है। यह भिक्षा से कुछ अनाज या फल लाना हमारी दिन चर्या का हिस्सा है "। फिर औरत ने कहा " जाओ जाओ कहीं और जाओ"। भिक्षु भोला" अच्छा माई। इश्वार सबका भला करे"। कह कर जाने लगा। तब फिर औरत ने हैरान होकर कहा " एक बात बोलो, मैंने इतना कुछ कहा तुम फिर भी शांत रहे। तुम्हे गुस्सा नही आया"। तब भिक्षु बोला" माई । जो मैंने ग्रहण ही नही किया । तो मेरा कैसा। तुमने क्रोध में जो कहा मैंने ग्रहण ही नही किया। तो मुझ में वो प्रकृति कहाँ से आएगी"। औरत आपने किए पर बहुत पछतावा था।
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