सांझ
सांझ एक ऐसी देखी थी,
बुझी हुई हार देखी थी।
हारो तो भी मन में ,
एक अहसास होता है।
जीते नहीं तो क्या हुआ,
कुछ तो किया हमने,
इसका अभिमान होता है।
पर इस हार में तो अभिमान
चूर हो गया,
स्वाभिमान भी चकनाचूर हो गया।
जिसने जुल्म किया मुझ अबला पर,
उसका तिरस्कार किया,
छोड़ आई तिल तिल कर मरना,
दहेज़ लोभी का बहिष्कार किया।
पर यह क्या जिन्होंने पैदा किया,
उन्होंने कहा कि तुमने हमें
शर्मसार किया।
शर्मसार किया।
सांझ एक ऐसी देखी थी,
बुझी हुई हार देखी थी.
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