2011-03-11
यहीं पे था मेरा बचपन
यहीं पे था मेरा बचपन, यहीं कहीं पे था
यहीं हंसा था
यहीं कही पे रोया था
यहीं दरख्तों क साये मैं
थक क सोया था
यहीं पे जुगनुओं से अपनी बात चलती थी
वो हंसी जो हर पल साथ चलती थी
यहीं पे था वो लाराक्पन
यहीं कहीं पे था
यहीं पे माँ मुझ को सीनी लगाये रखती थी
यहीं पे पापा ने इक बार कान खिंचा था
शरारत किसी ओर न कि थी सजा मुझी थी मिली
मैं कितनी दार खरा धुप मैं रहा तनहा
तमाम यार मेरी खुश मेरी सजा पे थी
यहीं पे था वो लड़कपन यहीं कहीं पे था
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