2009-07-27

यह जीवन की डोर किसने बांधी है,

सांसो को पिरो कर बनाई इक माला .

चलते जाते है हम यूँ ही आगे आगे,

चाहे हो कहीं अँधेरा या उजाला।

क्या पाते हैं उजाले से , क्या खो देते हैं अन्देरे में?

बस अंको के हिसाब से रहते हैं एक घेरे में।

एक दिन , दो साल या पन्द्रेह बरस,

कोई पल पाते हैं क्या इसमे सरस?

फिरते है किन इच्छायों के लिए ,

जिन्होंने केवल दी एक मृगत्रिष्णा.

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मीठे बोल

दो मीठे बोल किसी को बोलिए उसका खून बढ जाएगा आपका रक्तदान हो जायेगा